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Chankya niti : Chapter - 2 [ chankya niti in hindi ] चाणक्य नीति : अध्याय - द्वितीय [ हिन्दी में ]

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चाणक्य नीति : अध्याय द्वितीय [chankya niti in hindi ] Chapter -Second  chankya niti अध्याय प्रथम : CHAPTER-1 अध्याय तृतीय : CHAPTER-3 1. झूठ बोलना, कठोरता, छल करना, बेवकूफी करना, लालच, अपवित्रता और निर्दयता ये औरतो के कुछ नैसर्गिक दुर्गुण है। 1.Untruthfulness, rashness, guile, stupidity, avarice, uncleanliness and cruelty are a woman's seven natural flaws. 2.भोजन के योग्य पदार्थ और भोजन करने की क्षमता, सुन्दर स्त्री और उसे भोगने के लिए काम शक्ति, पर्याप्त धनराशी तथा दान देने की भावना - ऐसे संयोगों का होना सामान्य तप का फल नहीं है। 2. To have ability for eating when dishes are ready at hand, to be robust and virile in the company of one's religiously wedded wife, and to have a mind for making charity when one is prosperous are the fruits of no ordinary austerities. ३. उस व्यक्ति ने धरती पर ही स्वर्ग को पा लिया : १. जिसका पुत्र आज्ञांकारी है, २. जिसकी पत्नी उसकी इच्छा के अनुरूप व्यव्हार करती है, ३. जिसे अपने धन पर संतोष है। 3. He whose son is obedient ...

Chankya niti : Chapter - 1 [ chankya niti in hindi ] चाणक्य नीति : अध्याय - प्रथम [ हिन्दी में ]

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चाणक्य एक महान विद्वान थे। चाणक्य का जन्म पंजाब में हुआ था और मृत्यु पाटिलपुत्र में हुए थी। चाणक्य ने कई सारे ग्रंथों की रचना की है जिनमे " चाणक्य निति ,अर्थशात्र ,अर्थनीति आदि है। अगर आपको अपने जीवन को सफल बनाना है तो आपके लिए चाणक्य निति से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता। आज से ही आपको चाणक्य के विचारों को अपने जीवन में उतारना शुरू कर देना चाहिए अर्थात चाणक्य निति का अध्ययन करना चाहिए। चाणक्य हिन्दू धर्म को मानते थे। चाणक्य नीति : अध्याय प्रथम [chankya niti in hindi] Chapter - First  chankya niti अध्याय द्वितीय : CHAPTER-2 १. तीनो लोको के स्वामी सर्वशक्तिमान भगवान विष्णु को नमन करते हुए मै एक राज्य के लिए नीति शास्त्र के सिद्धांतों को कहता हूँ. मै यह सूत्र अनेक शास्त्रों का आधार ले कर कह रहा हूँ।  1. Humbly bowing down before the almighty Lord Sri Vishnu, the Lord of the three worlds, I recite maxims of the science of political ethics (niti) selected from the various satras (scriptures). 2. जो व्यक्ति शास्त्रों के सूत्रों का अभ्यास करके ज्ञान ग्रहण करेगा ...

ब्राह्मणी और तिल के बीज - मित्र सम्प्राप्ति - पंचतंत्र

ब्राह्मणी और तिल के बीज - मित्र सम्प्राप्ति - पंचतंत्र बिना किसी कारण के कोई कार्य नहीं होता  एक बार की बात है एक गांव में एक निर्धन ब्राह्मण परिवार रहता था। एक समय उनके यहाँ कुछ अतिथि आये हुए थे। घर में खाने पीने का सारा सामान समाप्त हो चुका था, इसी बात को लेकर ब्राह्मण और ब्राह्मण-पत्‍नी में यह बातचीत हो रही थी, कि अतिथियों को भोजन में क्या खिलाया जाये।  ब्राह्मण बोला ---"कल सुबह मकर-संक्रान्ति है, भिक्षा के लिये मैं दूसरे गाँव जाऊँगा । वहाँ एक ब्राह्मण सूर्यदेव की तृप्ति के लिए कुछ दान करना चाहता है ।" ब्राह्मण पत्‍नी बोली ---"तुझे तो भोजन योग्य अन्न कमाना भी नहीं आता । तेरी प‍त्‍नी होकर मैंने कभी सुख नहीं भोगा, मिष्टान्न नहीं खाये, वस्त्र और आभूषणों की तो बात ही क्या कहनी ?" ब्राह्मण---"देवी ! तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए । अपनी इच्छा के अनुरुप धन किसी को नहीं मिलता । पेट भरने योग्य अन्न तो मैं भी ले ही आता हूँ । इससे अधिक धन की तृष्णा का त्याग कर दो । अधिक धन की तृष्णा के चक्कर में मनुष्य के माथे पर शिखा हो जाती है ।" ब्राह्मणी ...

मूर्ख बगुला और नेवला -मित्रभेद -पंचतंत्र

मूर्ख बगुला और नेवला -मित्रभेद -पंचतंत्र  वहुत पुरानी बात है। एक घना जंगल था। उस जंगल में एक बड़े वट-वृक्ष की खोल में बहुत सारे बगुले रहते थे । उसी वृक्ष की जड़ में एक काला साँप भी रहता था । वह सांप रोजाना बगुलों के छोटे-छोटे बच्चों को खा जाया करता था । एक बगुला साँप द्वार बार-बार बच्चों के खाये जाने पर बहुत दुःखी और विरक्त सा होकर नदी के किनारे आ बैठा । उसकी आँखों में आँसू भरे हुए थे। बगुले को सांप से अपने बच्चों को बचाने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। उस बगुले को इस प्रकार दुःखी अवस्था में देखकर एक केकड़े ने पानी से निकल कर बगुले से कहा :-"मामा ! क्या बात है, आज रो क्यों रहे हो ?" आज से पहले कभी भी मेने आपको इतना उदास और दुःखी देखा नहीं था। बगुले ने कहा - " अरे भैया ! बात यह है कि मेरे बच्चों को साँप हर बार खा जाता है। कुछ उपाय नहीं सूझता, किस प्रकार साँप का नाश किया जाय और उससे छुटकारा मिले । तुम ही कोई उपाय बताओ। केकड़े ने अपने मन ही मन सोचा, ’यह बगुला मेरा जन्मजात वैरी ( शत्रु ) है, इसे ऐसा उपाय बताऊंगा, जिससे साँप के नाश के साथ-साथ इ...

सिंह और सियार - मित्रभेद - पंचतंत्र

सिंह और सियार - मित्रभेद - पंचतंत्र वर्षों पहले की बात है हिमालय की किसी कन्दरा में एक बलिष्ठ शेर रहा करता था। एक दिन वह एक भैंसे का शिकार कर और उसका भक्षण कर अपनी गुफा को लौट रहा था। तभी रास्ते में उसे एक मरियल और कमजोर सा सियार मिला जिसने शेर को लेटकर दण्डवत् प्रणाम किया।  जब शेर ने उससे ऐसा करने का कारण पूछा तो उसने कहा, “सरकार मैं आपका सेवक बनना चाहता हूँ। कुपया मुझे आप अपनी शरण में ले लें। मैं आपकी सेवा करुँगा और आपके द्वारा छोड़े गये शिकार से ही अपना गुजर-बसर कर लूंगा।' शेर ने उसकी बात स्वीकार कर ली और उसे मित्रवत अपनी शरण में रख लिया।  कुछ ही दिनों में शेर द्वारा छोड़े गये शिकार को खा-खा कर वह सियार बहुत मोटा - ताजा हो गया। प्रतिदिन सिंह के पराक्रम को देख-देखकर उसने भी स्वयं को सिंह का ही प्रतिरुप मान लिया। एक दिन उसने सिंह से कहा, 'अरे सिंह ! मैं भी अब तुम्हारी तरह शक्तिशाली हो गया हूँ। आज मैं एक हाथी का शिकार करुंगा और उसका भक्षण करुंगा और उसके बचे हुए माँस को तुम्हारे लिए छोड़ दूँगा।'  सिंह उसकी बात का बुरा नहीं मानता था क्योक...

तीन मछलियां - मित्रभेद - पंचतंत्र

तीन मछलियां - मित्रभेद - पंचतंत्र एक नदी के किनारे एक बडा जलाशय था। वह जलाशय नदी से जुड़ा हुआ था। जलाशय में पानी गहरा होता हैं, इसलिए उसमें काई जम जाती है और वहुत सारे जलीय सूक्ष्म पौधे भी उग आते है जो कि मछलियों का प्रिय भोजन होता हैं। इस प्रकार के स्थान मछलियों को बहुत रास आते हैं। उस जलाशय में नदी से आकर बहुत-सी मछलियां रहती थी। अंडे देने के लिए तो लगभग सभी मछलियां उस जलाशय में ही आती थी। वह जलाशय लम्बी-लम्बी घास व झाडियों द्वारा घिरा होने के कारण आसानी से हर किसी की नजर नहीं आता था। उसी मे तीन मछलियों का झुंड रहता था। उनके नाम अन्ना, प्रत्यु, यद्दी थे और उनके स्वभाव भी भिन्न थे। अन्ना संकट आने के लक्षण मिलते ही संकट टालने का उपाय करने में विश्वास रखती थी। प्रत्यु कहती थी कि संकट के आने पर ही उससे बचने का यत्न करना चाहिए। यद्दी का मानना था कि संकट को टालने या उससे बचने की बात बेकार हैं करने कराने से कुछ नहीं होता जो किस्मत में लिखा है, वह तो होकर ही रहेगा। एक दिन शाम के वक्त मछुआरे नदी में मछलियां पकडकर ...

एक व्यापारी का पतन और उदय - मित्रभेद - पंचतंत्र

एक व्यापारी का पतन और उदय - मित्रभेद - पंचतंत्र  वहुत पुराने समय की बात है बर्धमान नाम का एक शहर था। शहर में एक बहुत ही कुशल व्यापारी रहता था। राजा को उसकी क्षमताओं के बारे में पता था, और इसलिए राजा ने उसे राज्य का प्रशासक बना दिया। अपने कुशल अच्छे - अच्छे तरीकों से उसने आम आदमी को भी वहुत खुश रखा था, और साथ ही दूसरी तरफ राजा को भी बहुत हद तक प्रभावित किया था। कुछ दिनों के बाद उस व्यापारी ने अपनी लड़की का विवाह तय कर दिया । इस उपलक्ष्य में व्यापारी ने एक बहुत बड़े भोज का आयोजन किया। इस भोज में उसने राज परिवार से लेकर प्रजा, सभी को आमंत्रित किया। भोज के दौरान उसने सभी को बहुत सम्मान दिया और सभी मेहमानों को आभूषण और उपहार दिए। राजघराने का एक सेवक, जो महल में झाड़ू लगाता था, वह भी इस भोज में शामिल हुआ, मगर गलती से वह एक ऐसी कुर्सी पर बैठ गया जो राज परिवार के लिए नियत थी।  यह देखकर व्यापारी बहुत क्रोधित हो गया और उसने सेवक की गर्दन पकड़ कर उसे बेज्जत कर भोज से धक्के देकर बाहर निकलवा दिया। सेवक को वहुत शर्मिंदगी महसूस हुई और उसने व्या...

शेर ,सियार ,कौवा और ऊंट मित्रभेद - पंचतंत्र की कहानी

शेर ,सियार ,कौवा और ऊंट मित्रभेद - पंचतंत्र किसी वन में मदोत्कट नाम का सिंह निवास करता था। बाघ, कौआ और सियार, ये तीन उसके नौकर थे। एक दिन उन्होंने एक ऐसे उंट को देखा जो अपने गिरोह से भटककर उनकी ओर आ गया था। उसको देखकर सिंह कहने लगा, “अरे वाह! यह तो विचित्र जीव है। जाकर पता तो लगाओ कि यह वन्य प्राणी है अथवा कि ग्राम्य प्राणी” यह सुनकर कौआ बोला, “स्वामी! यह ऊंट नाम का जीव ग्राम्य-प्राणी है और आपका भोजन है। आप इसको मारकर खा जाइए।” सिंह बोला, “ मैं अपने यहां आने वाले अतिथि को कभी नहीं मारता। कहा गया है कि विश्वस्त और निर्भय होकर अपने घर आए अपने शत्रु को भी नहीं मारना चाहिए। अतः उसको अभयदान देकर यहां मेरे पास ले आओ जिससे मैं उसके यहां आने का कारण पूछ सकूं।” सिंह की आज्ञा पाकर उसके अनुचर ऊंट के पास गए और उसको आदरपूर्वक सिंह के पास ले आये। ऊंट ने सिंह को प्रणाम किया और बैठ गया। सिंह ने जब उसके वन में विचरने का कारण पूछा तो उसने अपना परिचय देते हुए बताया कि वह साथियों से बिछुड़कर भटक गया है। सिंह के कहने पर उस दिन से वह कथनक नाम का ऊंट उनके साथ ही रहने लगा।  उसके कुछ...

टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र का अभिमान मित्रभेद - पंचतंत्र की कहानी

टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र का अभिमान  मित्रभेद - पंचतंत्र  समुद्रतट के एक भाग में टिटिहरी का एक जोडा़ रहता था । अंडे देने से पहले टिटिहरी ने अपने पति को एक सुरक्षित प्रदेश की खोज करने के लिये कहा । टिटिहरे ने कहा - "यहां अधिकतर सभी स्थान पर्याप्त सुरक्षित हैं, तुझे चिंता करने की जरुरत नहीं ।" टिटिहरी बोली - "समुद्र में जब ज्वार आता है तो उसकी लहरें मतवाले विशालकाय हाथी को भी खींच कर ले जाती हैं, इसलिये हमें इन लहरों से दूर कोई सुरक्षित स्थान देखकर रखना चाहिये ।" टिटिहरा बोला - "समुद्र में इतना दुःसाहस नहीं है कि वह मेरी सन्तान को कष्ट पहुँचाये । वह तो मुझ से डरता है । इसलिये तू निश्चंत होकर यहीं तट पर अंडे दे दे ।" समुद्र ने टिटिहरे की ये सारी बातें सुनलीं । उसने सोचा - "यह टिटिहरा बहुत अभिमानी हो गया है । आकाश की ओर टांगें करके भी यह इसीलिये सोता है कि इन टांगों से ही मनो जैसे गिरते हुए आकाश को थाम लेगा । इसके अभिमान को चूर - चूर करना चाहिये ।" यह सोचकर समुद्र ने ज्वार आने पर टिटिहरी के अंडों को लहरों में बहा दिया । टिटिहरी जब दू...

खटमल और बेचारी जूं - मित्रभेद - पंचतंत्र की कहानी

खटमल और बेचारी जूं - मित्रभेद - पंचतंत्र पुराने समय की बात है। एक राजा था। उसके शयनकक्ष में मंदरीसर्पिणी नाम की जूं ने डेरा डाल रखा था। रोज रात को जब राजा जब सोने जाता तो वह चुपके से बाहर निकलकर आती और राजा का खून चूसकर फिर अपने स्थान पर जाकर छिप जाती। संयोग से अचानक एक दिन अग्निमुख नाम का एक खटमल भी राजा के शयनकक्ष में आ पहुंचा। जूं ने जब उस खटमल को वहां देखा तो जूं ने उस खटमल को वहां से चले जाने को कहा। जूं को अपने अधिकार-क्षेत्र में किसी अन्य का दखल सहन नहीं था। लेकिन खटमल भी कम चतुर न था। खटमल जूं की बात सुनकर बोला , ‘‘देखो, मेहमान से इस तरह बर्ताव नहीं किया जाता, मैं आज रात तुम्हारा मेहमान हूं।’’ जूं अंततः खटमल की चिकनी-चुपड़ी बातों में आ गई और उसे शरण देते हुए बोली, ‘‘ठीक है, तुम आज रातभर यहाँ रुक सकते हो, लेकिन राजा को काटोगे तो नहीं उसका खून चूसने के लिए।’’ खटमल बोला, ‘‘लेकिन मैं तुम्हारा मेहमान हू , मुझे कुछ तो दोगी खाने के लिए। और राजा के खून से बढ़िया भोजन और क्या हो सकता है।’’  जूं बोली,  तो ठीक है लेकिन ,‘‘तुम चुपचाप और धीरे - धीरे राजा का ...

दुष्ट सर्प और कौवे - मित्रभेद - पंचतंत्र की कहानी

दुष्ट सर्प और कौवे - मित्रभेद - पंचतंत्र  जंगल में एक बहुत पुराना विशाल बरगद का पेड था। उस पेड पर एक घोंसला बनाकर कौआ-कव्वी का जोडा रहता था। उसी पेड के नीचे उसके खोखले तने में कहीं से एक दुष्ट सर्प आकर रहने लगा। हर वर्ष मौसम आने पर कव्वी घोंसले में अंडे देती और दुष्ट सर्प मौक़ा मिलते ही उनके घोंसले में जाकर सारे अंडे खा जाता। एक दिन जब कौआ व कव्वी जल्दी भोजन पाकर शीघ्र ही लौट आए तो उन्होंने देखा कि वह दुष्ट सर्प उनके घोंसले में रखे अंडों को खा रहा है। अंडे खाकर सर्प वहां से चला गया कौए ने कव्वी को ढाडस बंधाया 'प्रिये, हिम्मत से काम लो। अब हमें हमारे शत्रु का पता चल गया हैं। कुछ न कुछ उपाय भी सोच लेंगे।' कौए ने काफ़ी सोच - विचार करने के बाद, और पहले वाले घोंसले को छोड उससे काफ़ी ऊपर अन्य टहनी पर घोंसला बनाया और कव्वी से बोला 'यहां हमारे अंडे सुरक्षित रहेंगे। हमारा घोंसला पेड की सबसे ऊँची चोटी के निकट हैं और ऊपर हमेशा आसमान में चील मंडराती रहती हैं। चील सांप की जन्मजात बैरी हैं। दुष्ट सर्प यहां ...

हाथी और गौरैया - मित्रभेद - पंचतंत्र की कहानी

हाथी और गौरैया - मित्रभेद - पंचतंत्र एक घने जंगल में किसी पेड़ पर एक गौरैया अपने पति के साथ रहती थी। एक मजबूत पेड़ पर उनका घोंसला था। वह अपने घोंसले में अंडों से चूजों के निकलने का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। एक दिन की बात है गौरैया अपने अंडों को से रही थी, और उसका पति रोज की तरह खाने के इन्तजाम के लिए बाहर गया हुआ था। तभी वहां एक गुस्सैल हाथी आया और आस-पास के पेड़ पौधों को रौंदते हुए तोड़-फोड़ करने लगा। उसी तोड़ फोड़ के दौरान वह गौरैया के पेड़ तक भी पहुंच गया और उसने पेड़ को गिराने के लिए उसे जोर-जोर से हिलाया, पेड़ काफी मजबूत था इसलिए हाथी पेड़ को तो नहीं तोड़ पाया और वहां से चला गया, लेकिन हाथी के हिलाने से उस पेड़ से गौरैया का घोसला टूटकर नीचे आ गिरा और उसके सारे अंडे फूट गए। गौरैया यह सब देखकर बहुत दुखी हुई और जोर - जोर से रोने लगी, तभी उसका पति भी वहां वापस आ गया। वह भी बेचारा यह देखकर बहुत दुखी हुआ। इसके बाद उन्होंने हाथी से बदला लेने और उसे अच्छा सबक सिखाने का फैसला किया। वे दोनों अपने मित्र कठफोड़वा के पास पंहुचे और उसे सारा बृतान्त ...

मूर्ख बातूनी कछुआ - मित्रभेद - पंचतंत्र की कहानी

मूर्ख बातूनी कछुआ - मित्रभेद - पंचतंत्र  एक तालाब में कम्बुग्रीव नामक एक कछुआ रहता था। उसी तलाब में दो हंस तैरने के लिए अक्सर आया करते थे। हंस बहुत हंसमुख और मिलनसार थे। कछुए और हंसो में अतिशीग्र मित्रता हो गई। हंसो को कछुए का धीमे-धीमे चलना और उसका भोलापन बहुत अच्छा लगा। हंस बहुत ज्ञानी भी थे। वे कछुए को अदभुत बातें बताते। ॠषि-मुनियों की कहानियां सुनाते। हंस तो वहुत दूर-दूर तक घूमकर आते थे, इसलिए दूसरी जगहों की अनोखी - अनोखी बातें कछुए को बताते।  कछुआ वहुत ही मंत्रमुग्ध होकर उनकी बातें सुनता था। बाकी तो सब ठीक था, परन्तु कछुए को बीच में टोका-टाकी करने की बहुत आदत थी। अपने सज्जन स्वभाव के कारण हंस कछुए की इस आदत का बुरा नहीं मानते थे। उन तीनों की घनिष्टता तेजी से बढती गई। दिन गुजरते गए। एक बार वहां बडे जोर का सूखा पडा। बरसात के मौसम में भी एक बूंद पानी तक नहीं बरसा। उस तालाब का पानी धीरे - धीरे सूखने लगा। प्राणी मरने लगे, मछलियां तो वहां तडप-तडपकर मर गईं। तालाब का पानी भी और तेजी से सूखने लगा। एक समय ऐसा भी आया कि तालाब म...

नीले सियार की कहानी - मित्रभेद - पंचतंत्र

नीले सियार की कहानी - मित्रभेद - पंचतंत्र एक बार की बात हैं कि एक मोटा - ताजा सियार जंगल में एक पुराने पेड के नीचे खडा था। अचानक हवा का तेज झोंका आया और उसने पेड़ को नीचे गिरा दिया। सियार उस पेड़ की चपेट में आ गया और बुरी तरह से  घायल हो गया। वहां से वह सियार बड़ी मुश्किल से घिसटता-घिसटता अपनी मांद तक पहुंचा। कई दिनों के बाद वह मांद से बाहर निकलकर आया। उसे तेज भूख लग रही थी। सियार का शरीर  काफी कमज़ोर हो गया था तभी अचानक उसकी नजर एक एक खरगोश पर पड़ी। उसे दबोचने के लिए वह तेजी से खरगोश पर झपटा। सियार ने कुछ दूर तक उसका पीछा किया। अंततः वह थककर हांफने लगा। उसके शरीर में इतनी जान ही कहां रह गई थी? इसके बाद उसने एक बटेर का पीछा करने की कोशिश की। यहां पर भी उसे सफलता नहीं मिली। वह इतना थक चुका था कि हिरण का पीछा करने की तो उसकी हिम्मत भी न हुई। वह खडा - खड़ा सोचने लगा। शिकार में कर नहीं पा रहा हूँ। अब तो भूखों मरने की नौबत आई ही समझो। अब क्या किया जाए? सियार जंगल में इधर -  उध...

गौरेया और बन्दर - मित्रभेद - पंचतंत्र की कहानी

गौरेया और बन्दर - मित्रभेद - पंचतंत्र एक राज्य से कुछ ही दूरी पर एक वहुत घना जंगल था। उस जंगल के एक बड़े और घने वृक्ष की शाखा पर चिड़ा-चिड़ी का एक जोड़ा रहता था। उन दोनों ने बड़ी मेहनत और लगन से उस पेड़ की शाखा पर रहने के लिए एक घोसला बनाया। दोनों अपने घोंसले में बड़े सुख-चैन से रहते थे।  देखते ही देखते सर्दी ऋतु का मौसम आ गया। एक दिन उस जंगल में बड़ी ठंडी-ठंडी हवा चलने लगी और साथ में हल्की -हल्की बूंदा-बांदी भी शुरु हो गई। उस समय एक बन्दर ठंडी हवा और बरसात से ठिठुरता हुआ उस वृक्ष की शाखा पर आ बैठा। सर्दी के कारण बन्दर के दांत कटकटा रहे थे। उसे देखकर चिड़िया ने कहा – “अरे ! तुम कौन हो ? देखने में तो तुम्हारा चेहरा मानव जैसा लगता है; हाथ-पैर भी हैं तुम्हारे । फिर भी तुम यहाँ बैठे हो, घर बनाकर क्यों नहीं रहते? घर बनाकर रहोगे तो ठण्ड और बारिश से कभी परेशानी नहीं होगी।” बन्दर बोला ---"अरी तुम चुप रहो ? तू अपना काम कर। मेरा उपहास क्यों करती है ?" चिड़िया ने बन्दर की बातों को नजरंदाज कर दिया अर्थात उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। चिड़िया अपनी धुन में कुछ न कुछ बन्दर से...

मूर्ख मित्र - मित्रभेद - पंचतंत्र की कहानी

मूर्ख मित्र - मित्रभेद - पंचतंत्र पुराने समय की बात है किसी राजा के राजमहल में एक बन्दर राजा के सेवक के रुप में रहता था । वह राजा का बहुत विश्वास-पात्र सेवक और भक्त था। राजा को उस बन्दर पर वहुत भरोसा था। राजा की राजधानी अन्तःपुर में भी वह बेरोक-टोक सभी स्थानों पर आ जा सकता था। राजा ने उस बन्दर को सभी जगह घूमने की खुली छूट दे रखी थी।  एक दिन जब राजा सो रहा था और बन्दर पंखा झल रहा था, तो बन्दर ने देखा, एक मक्खी बार-बार राजा की छाती पर बैठ जाती थी। पंखे से बार-बार हटाने पर भी वह मानती नहीं थी, उड़कर फिर वहीं बैठी जाती थी। वह मख्खी राजा की नींद में बार - बार विघ्न डाल रही थी। मख्खी की इस हरकत को देखकर बन्दर को क्रोध आ गया। बन्दर को यह बिल्कुल बर्दास्त नहीं था कि कोई भी राजा को परेशान करे। उसने पंखा को तो वही छोड़ दिया और अपने हाथ में तलवार उठाली।  इस बार जैसे ही मख्खी राजा की छाती पर बैठी तो बन्दर ने अपने पूरे बल के साथ मक्खी पर तलवार से प्रहार कर दिया । मक्खी तो एक दम से उड़ गई, परन्तु राजा की छाती तलवार के प्रहार से...