बन्दर और लकड़ी का खूंटा मित्रभेद - पंचतंत्र की हिंदी कहानी

 बन्दर और लकड़ी का खूंटा 

मित्रभेद - पंचतंत्र 

वहुत पुराने समय की बात है दोस्तों एक शहर के नजदीक जंगल में एक मंदिर के निर्माण का कार्य चल रहा था। उस मंदिर में लकडी का कार्य बहुत था इसलिए लकडी चीरने वाले बहुत से मज़दूर काम पर लगे हुए थे। मंदिर के चारों तरफ लकडी के लठ्टे पडे हुए थे ,क्योंकि लकड़ी में से लठ्टे व शहतीर चीरने का काम चल रहा था। सारे मज़दूरों को दोपहर का भोजन करने के लिए शहर जाना पडता था, इसलिए दोपहर के समय एक घंटे तक वहां कोई नहीं रहता था।
बन्दर और लकड़ी का खूंटा
बन्दर और लकड़ी का खूंटा 
एक दिन खाने का समय हुआ तो सारे मज़दूर काम छोडकर शहर की तरफ चल दिए। एक लठ्टा आधा चिरा हुआ रह गया था। आधे चिरे लठ्टे में मज़दूर लकडी का कीला फंसाकर भोजन के लिए चले गए। ऐसा कारीगरों ने इसलिए किया क्योंकि दोबारा आरी घुसाने में आसानी रहती है।

उस जंगल में बन्दर भी काफी संख्या में रहते थे। जैसे ही कारीगर व मजदूर खाना खाने के लिए शहर की और लौटे तभी वहां बंदरों का एक दल उछलता-कूदता आया। उनमें से एक बन्दर वहुत ही शरारती था, जो बिना मतलब चीजों से छेडछाड करता रहता था। बिना मतलब चीजों को छेड़ना उसकी आदत थी। बंदरों के सरदार ने सबको वहां पडी चीजों से छेडछाड न करने का आदेश दिया। कुछ बंदर पेडों की ओर चल दिए और कुछ वहीं उछल-कूद कर रहे थे , पर वह शैतान बंदर सबकी नजर बचाकर बेमतलब की चीजों को छेड़ने लग गया।

अचानक उस शरारती बन्दर की नजर वहां रखे अधचिरे लठ्टे पर पडी। बस,फिर वह उसी से खेलने लगा। उस लठ्ठे के बीच में अडाए गए कीले को देखने लगा। फिर उसने वही पास में पडी आरी को देखा। आरी को उठाकर लकडी पर रगडने लगा। उससे किर्रर्र-किर्रर्र की आवाज़ निकलने लगी तो उसने गुस्से से आरी पटक दी। उन बंदरो की भाषा में किर्रर्र-किर्रर्र का मतलब ‘निखट्टू’ था। वह एक बार फिर से लठ्टे के बीच फंसे कीले को देखने लगा।

उसके दिमाग में कौतुहल उत्पन्न होने लगा। वह सोचने लगा कि इस कीले को लठ्टे के बीच में से निकाल दिया जाए तो क्या होगा? अब वह कीले को पकडकर उसे लठ्ठे से बाहर निकालने के लिए जोर आजमाईश करने लगा। लठ्टे के बीच फंसाया गया कीला तो दो पाटों के बीच बहुत मजबूती से जकडा हुआ होता हैं, क्योंकि लठ्टे के दो पाट बहुत मजबूत स्प्रिंग वाले क्लिप की तरह उसे दबाकर रखते हैं।

बंदर खूब जोर लगाकर उस कीले को हिलाने की कोशिश करने लगा। कीला जोर लगाने पर हिलने व खिसकने लगा तो बंदर अपनी शक्ति पर खुश होने लगा। वह और ज़ोर से खौं-खौं करता हुआ कीला सरकाने लगा। इस धींगामुश्ती और जबरदस्ती के बीच बंदर की पूंछ दो पाटों के बीच आ गई, जिसका उसे पता ही नहीं लगा।

उसने उत्साहित होकर अपनी सारी तागत लगा दी और एक जोरदार झटका मारा और जैसे ही कीला बाहर निकला, लठ्टे के दो चिरे भाग फटाक से क्लिप की तरह जुड गए और बीच में फंस गई बंदर की पूंछ। बंदर चिल्ला उठा।तभी मज़दूर वहां लौटे। उन्हें देखते ही बंदर ने भागने के लिए जोर लगाया तो उसकी पूंछ टूट गई। वह चीखता हुआ टूटी पूंछ लेकर भागा।

शिक्षा : हमे किसी भी वस्तु को बिना जानकारी के छेड़ना नहीं चाहिए। दूसरी बिना आज्ञा किसी अन्य पुरुष के सामान या मशीनरी को भी हाथ नहीं लगाना चाहिए। 

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