बगुला भगत ,पंचतंत्र-मित्रभेद की प्रेरक कहानी
बगुला भगत -मित्रभेद
एक जंगल में वहुत बड़ा तालाब था। उस तालाब में सभी प्रकार के जीव -जंतुओं के लिए खाने के लिए भोजन सामग्री उपलब्ध थी। इस कारण से उस तालाब में व् उसके आस पास सभी प्रकार के जीव-जंतु जैसे पक्षी ,सांप ,मछलियां ,कछुए ,केकड़े आदि वास करते थे। उस तालाब के पास में ही एक बगुला रहता था जो कि वहुत ही आलसी था। उस बगुले को अपनी आँखों से भी कम दिखाई देता था और परिश्रम तो वह विल्कुल भी करना ही नहीं चाहता था। मछलियां पकड़ने के लिए तो मेहनत करनी पड़ती है, जो कि बगुला विल्कुल भी नहीं करना चाहता था। इस कारण वह आलसी बगुला अधिक तरह भूखा ही रहता था। एक पैर पर खड़ा होकर यही सोचता रहता था, कि ऐसा क्या किया जाये कि बिना मेहनत के रोजाना भोजन मिलता रहे।
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बगुला भगत |
एक दिन बगुला के दिमाग में एक तरकीब आयी और वह उस तरकीब को आजमाने बैठ गया। वह तालाब के किनारे खड़ा होकर रोने का नाटक करने लगा और आँखों से दिखावटी आंसू बहाने लगा। एक केकड़ा उसे रोता हुआ देखकर उसके समीप आया और पूछने लगा। मामा क्या बात है ? अपने भोजन के लिए मछलियों का शिकार करने के बजाय यहाँ खड़े होकर आंसू बहा रहे हो ? बगुला हिचकी लेते हुए और रोते हुए स्वर में बोला। "बेटा, वहुत कर लिया मछलियों का शिकार। अब में यह पाप कार्य और नहीं करूँगा। मेरी अंतरात्मा जाग उठी है। साक्षात् में तुम देख रहे हो कि में अपने निकट आती हुई मछली को भी नहीं पकड़ रहा हूँ।
केकड़ा बोला मामा शिकार नहीं करोगे तो खाओगे क्या ? खाने के बिना जीवित कैसे रहोगे ? मर जाओगे। बगुले ने फिर से हिचकी लेते हुए स्वर में कहा " बेटा ऐसे जीवन का तो नष्ट होना ही अच्छा है जिसे जीने के लिए दूसरे जीवों का कत्ल करना पड़े। बैसे भी कुछ दिन बाद हम सबको जल्दी मरना पड़ेगा। मुझे अभी-अभी ज्ञात हुआ है, कि यहाँ कुछ समय बाद 12 वर्ष का लम्बा सूखा पड़ेगा। बगुले ने केकड़े से कहा, यह बात मुझे एक त्रिकालदर्शी महात्मा ने बताई है। सुना है कि उस महात्मा की भविष्यबाणी कभी गलत नहीं होती। केकड़े ने वहां से जाकर सभी को बताया कि बगुले ने किस तरह बलिदान और भक्ति का मार्ग अपना लिया है और जल्द ही लम्बा सूखा पड़ने बाला है।
उस तालाब के सारे जीव -जंतु जैसे मछलियां, कछुए , सारस , मेढक , केकड़े , बत्तखें आदि दौड़े-दौड़े बगुले के पास आये, और बोले अब तुम ही हमे इस बिपत्ति से बचने का कोई रास्ता बताओ। तुम तो भक्ति के मार्ग पर चलकर महाज्ञानी बन चुके हो। बगुले ने थोड़ी देर सोचकर बताया, कि यहाँ से कुछ दूर एक जलाशय है। जिसमे एक झरना पहाड़ी से आकर गिरता है जो कभी नहीं सूखता। इस जलाशय के सारे जीव उस जलाशय में चले जाये तो हम सब का जीवन बच सकता है। अब समस्या यह थी कि दूसरे तालाब तक जाया कैसे जाये ? बगुले भगत ने यह समस्या भी एक पल भर में सुलझा दी।
बगुले ने कहा में तुम्हे एक-एक करके बारी-बारी से अपनी पीठ पर बिठाकर उस तालाब तक पहुँचाऊगां। क्योंकि मेरा अब शेष जीवन परोपकार्य में गुजरेगा अर्थात दूसरों की भलाई करने में। सभी जीव-जंतुओं ने खुश होकर "बगुला भगत जी की जै" के नारे लगाए। अब बगुला भगत की पौ -बारह हो गई। अब बगुला भगत रोजाना एक जीव को अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाता, और कुछ दूर जाकर एक चट्टान पर डालकर उसे मार देता, और खा जाता। कभी -कभी भगत जी का मूड होता तो एक दिन में दो फेरे भी लगा देते और दो जीवों को चट कर जाते।
तालाब में जानवरों की संख्या धीरे -धीरे घटने लगी, और चट्टान के पास हड्डियों का ढेर बढ़ने लगा और साथ ही भगत जी की सेहत भी बनने लगी। भगत जी खा -खाकर वहुत मोटे हो गए। उनके चेहरे पर अलग ही लालिमा दिखने लगी और उनके पंख तो मानो चर्बी के तेज से सूरज की तरह चमकने लगे। बगुला भगत को देखकर दूसरे जीव कहने लगे , देखो दूसरों की सेवा का फल और पुण्य का मार्ग भगत जी के शरीर को खूब फल रहा है।
बगुला भगत की ख़ुशी का मन ही मन कोई ठिकाना नहीं था। वह सोचता दुनियां में मूर्खो की कोई कमी नहीं बस थोड़ी सी अक्ल होनी चाहिए। पता नहीं दुनियां में कैसे कैसे मुर्ख भरे पड़े है जो आसानी से सबका विस्वाश कर लेते है। ऐसे मूर्खो के बीच थोड़ी अक्ल से काम लिया जाये तो मजे ही मजे है। इन मूर्खो के बीच बिना हाथ -पैर हिलाये खूब दाबत उड़ाई जा सकती है। इस तरह यह सिलसिला वहुत दिनों तक चलता रहा।
एक दिन केकड़े ने बगुले से कहा "मामा" तुमने इतने सारे जीव -जन्तु यहाँ से दूसरे तालाब में पहुंचा दिए लेकिन मेरी बारी अभी तक नहीं आयी। भगत जी बोले 'बेटा ,आज तेरा ही नम्बर लेते है , चल आजा मेरी पीठ पर बैठ जा। केकड़ा खुश होकर लपाक से बगुले की पीठ पर बैठ गया। बगुला जब चट्टान के समीप पहुंचा तो वहां हड्डियों का ढेर देखकर केकड़े का माथा चकराने लगा। केकड़ा कुछ हकलाते हुए बोला। यह हड्डियों का ढेर कैसा है ? मामा वह जलाशय कितनी दूर है अभी ?
बगुला भगत हा -हा करते हुए खूब हंसा और बोला ' मुर्ख ' वहां कोई जलाशय नहीं है। में प्रतिदिन एक- एक को पीठ पर बिठाकर यहाँ लाकर खा जाता हूँ। आज तेरी बारी है तुझे मारूंगा और खा जाऊँगा। केकड़ा उसकी बातें सुनकर सिहर उठा, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और तुरन्त उसने अपने पंजो से उस दुष्ट बगुले की गर्दन दबोच ली, और तब तक दबाये रखी ,जब तक बगुले के प्राण नहीं निकल गए। उसके बाद केकड़ा बगुले भगत का कटा हुआ सिर लेकर तालाब पर लौटा। वहां आकर सारे जीवों को सच्चाई बता दी, कि किस तरह बगुला भगत उन्हें धोखा देता रहा और उन्हें एक -एक करके मारकर खाता रहा।
शिक्षा : दोस्तों हमे दूसरों की बातों पर आँखे बंद करके विस्वाश कभी नहीं करना चाहिए। पहले हमे परिस्थित के बारे में पूरी तरह से जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। उसके बाद ही आगे कदम बढ़ाना चाहिए। हो सकता है सामने बाला तुम्हें थोड़ा लालच देकर लुभाने की कोशिश कर रहा हो। इसके साथ-साथ हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि कठिन से कठिन परिस्थित में भी हमे अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए। प्रत्येक मुसीबत का मुकाबला हमे पूरे साहस और बुद्विमानी के साथ करना चाहिए।
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