कौवे और उल्लू का बैर - काकोलुकीयम् - पंचतंत्र
कौवे और उल्लू का बैर - काकोलुकीयम् - पंचतंत्र
एक बार हंस, तोता, बगुला, कोयल, मोर, चातक, कबूतर, उल्लू आदि सब पक्षियों ने सभा करके यह सलाह की कि उनका राजा वैनतेय केवल वासुदेव की भक्ति में ही लगा रहता है। व्याधों से उनकी रक्षा का कभी कोई उपाय नहीं करता। इसलिये पक्षियों का कोई दूसरा राजा चुन लिया जाय । कई दिनों की बैठक के बाद सभी पक्षियों ने एक सम्मति से सर्वाङग सुन्दर उल्लू को राजा चुन लिया ।
अभिषेक की तैयारियाँ होने लगीं, विविध तीर्थों से पवित्र जल मँगाया गया, सिंहासन पर रत्न जड़े गए, स्वर्णघट भरे गए, मङगल पाठ शुरु हो गया, ब्राह्मणों ने वेद पाठ शुरु कर दिया, नर्तकियों ने भी नृत्य की पूरी तैयारी कर लीं; कुछ ही क्षणों में उलूकराज राज्यसिंहासन पर विराजमान होने ही वाले थे कि कहीं से एक कौवा वहां आ गया ।
कौवे ने सोचा कि यह समारोह कैसा ? यह उत्सव किस उपलक्ष्य में ? पक्षियों ने भी कौवे को देखा तो आश्चर्य में पड़ गए । उसे तो किसी ने बुलाया ही नहीं था । भिर भी, उन्होंने सुन रखा था कि कौआ सब से चतुर कूटराजनीतिज्ञ पक्षी है। इसलिये उस से मन्त्रणा करने के लिये सब पक्षी उसके चारों ओर इकट्ठे हो गए ।
उलूक राज के राज्याभिषेक की बात सुन कर उस कौवे ने जोर से हँसते हुए कहा----"यह चुनाव बिल्कुल ठीक नहीं हुआ है । मोर, हंस, कोयल, सारस, चक्रवाक, शुक अनेक सुन्दर पक्षियों के रहते हुए भी दिवान्ध उल्लू और टेढ़ी नाक वाले एक अप्रियदर्शी पक्षी को राजा बनाना बिल्कुल भी उचित नहीं है । वह अपने स्वभाव से ही रौद्र है और कटुभाषी भी है । फिर अभी तो वैनतेय राजा ही बैठा है । एक राजा के रहते दूसरे को राज्यासन देना अनुचित और विनाशक भी है ।
पृथ्वी पर हमेशा एक ही सूर्य होता है; वही अपनी आभा से सारे संसार को चारों ओर से प्रकाशित कर देता है । एक से अधिक सूर्य होने पर विनाशकारी प्रलय हो जाती है । प्रलय में बहुत सारे सूर्य निकल जाते हैं; उन से संसार में विपत्ति ही विपत्ति आती है, कल्याण कभी नहीं होता । राजा हमेशा एक ही होता है । उसके नाम-कीर्तन मात्र से ही सारे काम बन जाते हैं।
"यदि तुम उल्लू जैसे नीच, आलसी, कायर, व्यसनी और पीठ पीछे कटुभाषी पक्षी को राजा बनाओगे तो तुम्हारा नष्ट हो जाना निश्चित है। कौवे की बाते सुनकर सब पक्षी वहां से उल्लू को राज-मुकुट पहनाये बिना ही चले गये । केवल अभिषेक की प्रतीक्षा करता हुआ उल्लू व उसकी मित्र कृकालिका और वह कौवा रह गये । उल्लू ने पूछा----"मेरा अभिषेक क्यों नहीं हुआ है ?"
कृकालिका ने कहा----"मित्र ! एक कौवे ने यहाँ आकर रंग में भंग कर दिया । शेष सब पक्षी यहाँ से उड़कर बापस चले गये हैं, केवल वह कौवा ही यहाँ बैठा हुआ है ।"
तब, उल्लू ने कौवे से कहा----"दुष्ट कौवे ! मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था जो तूने मेरे शुभ कार्य में विघ्न डाल दिया । आज से मेरा तेरा हमेशा के लिए वंशपरंपरागत वैर रहेगा ।"
यह कहकर उल्लू भी वहाँ से चला गया । कौवा बहुत चिन्तित हुआ और वहीं बैठा रहा । उसने सोचा----"मैंने बिना विचार किये अकारण ही उल्लू से वैर मोल ले लिया । दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप करना और कटु सत्य कहना भी काफी दुःखप्रद होता है ।"
यही सोचता-सोचता वह कौवा भी वहाँ से चला गया । तभी से कौओं और उल्लुओं में स्वाभाविक वैर चला आता है ।
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