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जून, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कुम्हार की कहानी - लब्धप्रणाशा - पंचतंत्र

कुम्हार की कहानी - लब्धप्रणाशा - पंचतंत्र एक कुम्हार था जिसका नाम युधिष्ठिर था। एक बार वह टूटे हुए घड़े के नुकीले ठीकरे से टकरा कर गिर गया । कुम्हार ठीकरे के ऊपर इस तरह गिरा कि वह ठीकरा सीधा उसके माथे में घुस गया । काफी खून बहने लगा । घाव वहुत गहरा था, कुम्हार ने दवा-दारु भी लगाया लेकिन ठीक न हुआ । घाव धीरे - धीरे बढ़ता ही गया । कई महीने घाव को ठीक होने में लग गये । ठीक होने के बाद भी घाव का निशान कुम्हार के माथे पर रह गया । कुछ दिन बाद उस देश में दुर्भिक्ष पड़ने लगा इस कारण कुम्हार एक दूसरे देश चला गया । वहाँ जाकर वह राजा के सेवकों में भर्ती हो गया । राजा की नजर एक दिन उसके माथे पर लगे घाव के निशान पर पड़ी। उस निशान को देखकर राजा ने समझा कि यह अवश्‍य ही कोई वीर पुरुष होगा , जो युद्ध में शत्रु का सामने से मुकाबला करते हुए घायल हो गया होगा । यह समझकर राजा ने कुम्हार को अपनी सेना में उच्च पद दे दिया । लेकिन राजा के पुत्र व अन्य सेनापति इस सम्मान को देखकर खुश नहीं थ...

घमंड का सिर नीचा - लब्धप्रणाशा - पंचतंत्र

घमंड का सिर नीचा - लब्धप्रणाशा - पंचतंत्र एक गांव में एक बढ़ई रहता था जिसका नाम था उज्वलक। वह बहुत ही निर्धन आदमी था । निर्धनता से तंग आकर वह एक दिन गांव छो़ड़कर दूसरे गांव के लिये चल दिया । रास्ते में बहुत घना जंगल पड़ता था । जंगल में उसने देखा कि एक ऊंटनी प्रसवपीड़ा से बहुत तड़फड़ा रही है । ऊँटनी ने जब बच्चा दिया तो वह बढ़ई उँट के बच्चे और ऊँटनी को अपने साथ लेकर अपने घर आ गया । वहां घर के बाहर ऊँटनी को खूंटी से बांधकर वह उसके भोजन के लिये पत्तों-भरी शाखायें काटने जंगल  में  चला गया । ऊँटनी ने वहां हरी-हरी और कोमल कोंपलें खाईं । बहुत दिन इसी तरह हरे-हरे पत्ते खाकर ऊंटनी काफी स्वस्थ और पुष्ट हो गई । ऊँट का बच्चा भी बढ़कर काफी जवान हो गया । बढ़ई ने बच्चे के गले में एक घंटा बांध दिया, जिससे कि वह कहीं गायब (खोना ) न हो जाय । दूर से ही उसकी आवाज सुनकर बढ़ई उसको घर लिवा लाता था । ऊँटनी के दूध से बढ़ई के बाल-बच्चे भी अच्छी तरह पलने लगे। ऊँट भार ढोने के काम भी आने लगा । उस ऊँट-ऊँटनी से ही बढ़ई...

सियार की रणनीति - लब्धप्रणाशा - पंचतंत्र

सियार की रणनीति - लब्धप्रणाशा - पंचतंत्र  एक जंगल में एक सियार रहता था। उसका सियार का नाम महाचतुरक था। एक दिन जंगल में उसकी नजर एक मरे हुए हाथी पर पड़ी। उसको देखते ही उसकी बांछे खिल गईं। सियार ने हाथी के मृत शरीर पर अपने दांत गड़ाये परन्तु चमड़ी मोटी होने की वजह से, वह हाथी की चमड़ी को चीरने में नाकाम रहा। वह हाथी के पास खड़ा - खड़ा कुछ उपाय सोच ही रहा था कि उसे एक सिंह उसकी ओर आता हुआ दिखाई दिया। आगे बढ़कर सियार ने सिंह का स्वागत किया और हाथ जोड़कर बोलने लगा , “स्वामी आपके भोजन के लिए ही मैंने इस हाथी को मारकर रखा है, आप इस हाथी का मांस ग्रहण कर मुझ पर उपकार कीजिए।” सिंह बोला , “मैं तो किसी अन्य के हाथों से मारे गए जीव का भक्षण नहीं करता हूं, इसे तो तुम ही खा लेना।” सियार मन ही मन खुश तो बहुत हुआ परन्तु उसकी हाथी की चमड़ी को चीरने की समस्या का हल अब भी नहीं हुआ। थोड़ी ही देर बाद उस तरफ एक बाघ आ निकला। बाघ मरे हुए हाथी को देखकर अपने होठों...

बंदर का कलेजा और मगरमच्छ - लब्धप्रणाशा - पंचतंत्र

बंदर का कलेजा और मगरमच्छ - लब्धप्रणाशा - पंचतंत्र  एक नदी के किनारे एक बहुत विशालकाय पेड़ था। उस पेड़ पर एक बंदर रहता था। उस पेड़ पर बड़े-बड़े मीठे और रसीले फल लगते थे। बंदर उन फलों को भरपेट खाकर बड़े मजे से रहता था। वह अकेला ही बड़े मजे से अपने दिन गुजार रहा था।  एक दिन एक मगर नदी से निकलकर उस पेड़ के तले आया, जिस पेड़ पर बंदर रहता था। पेड़ पर बैठे बंदर ने पूछा, 'तू कौन है भाई और कहाँ से आया है ?' मगर ने बंदर की ओर देखते हुए कहा, 'मैं मगरमच्छ हूं। बड़ी दूर से चलकर आया हूं। मुझे भूख लगी है और खाने की तलाश में यूं ही भटक रहा हूं।' बंदर बोला, 'यहां पर खाने की बिल्कुल कमी नहीं है। इस पेड़ पर ढेरों सारे फल लगते हैं। तुम चखकर देखो । अच्छे लगे तो मैं और फल तोड़कर दे दूंगा। तुम जितने चाहो खा सकते हो।' यह कह कर बंदर ने कुछ पके हुए फल तोड़कर मगरमच्छ की ओर फेंक दिए। मगरमच्छ उन्हें चखकर बोला, 'वाह, ये तो बड़े मीठे और मजेदार फल हैं।' ...

कुत्ता जो विदेश चला गया - लब्धप्रणाशा - पंचतंत्र

कुत्ता जो विदेश चला गया - लब्धप्रणाशा - पंचतंत्र दोस्तों एक गाँव में चित्रांग नाम का एक कुत्ता रहता था। वहां भोजन नहीं मिलने के कारण वह दुर्भिक्ष पड़ गया अर्थात उसका शरीर काफी कमजोर पड़ गया। अन्न के अभाव के कारण उस गांव में कई कुत्तों का वंशनाश हो गया। चित्रांग काफी चिंतित हो गया और इससे बचने का उपाय सोचने लगा। चित्रांग ने दुर्भिक्ष से बचने के लिये दूसरे गाँव जाने का निश्चय किया। अगले ही दिन वह दूसरे गांव की ओर पलायन कर गया। वहाँ पहुँच कर चित्रांग ने एक घर में चोरी से जाकर भरपेट खाना खा लिया । जिसके घर उसने खाना खाया था उसने तो कुछ़ नहीं कहा, लेकिन जैसे ही घर से बाहर निकला तो आसपास के सभी कुत्तों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया । उनमे भयंकर लड़ाई हुई । चित्रांग के शरीर पर कई सारे घाव लग गये । चित्रांग ने विचार किया ---’इससे तो अपना गाँव ही अच्छा था, जहाँ केवल दुर्भिक्ष ही था , कम से कम जान के दुश्मन कुत्ते तो नहीं थे ।’ यह सोच कर वह अपने गांव वापिस आ गया । अपने गाँव आने पर उससे बाकी सब कुत्तों ने पूछा---"चित्रांग ! दूसरे गाँव की बात बता। वह गाँव कैसा है ? वहाँ किस प्रकार ...

कौवे और उल्लू का युद्ध - काकोलुकियम - पंचतंत्र

कौवे और उल्लू का युद्ध - काकोलुकियम - पंचतंत्र दक्षिण देश की उत्तर दिशा में महिलारोप्य नाम का एक नगर था । नगर के समीप एक बड़ा पीपल का वृक्ष था । उसकी घने पत्तों से ढकी हुई शाखाओं पर पक्षियों के घोंसले बने हुए थे । उन्हीं में से कुछ घोंसलों में कौवों के कई परिवार रहते थे । कौवों का राजा वायसराज मेघवर्ण भी वहीं रहता था । वहाँ उसने अपने दल के लिये एक व्यूह सा बना लिया था। उससे कुछ दूर पर्वत की गुफा में उल्लओं का दल रहता था । इनका राजा अरिमर्दन था । दोनों में स्वाभाविक वैर था । अरिमर्दन रोजाना रात को पीपल के वृक्ष के चारों ओर चक्कर लगाता था । वहाँ कोई इकला-दुकला कौवा मिल जाता तो उसे वही मार देता था । इसी तरह एक-एक करके उसने सैंकड़ों कौवो को मार दिया । तब, मेघवर्ण ने अपने मन्त्रियों को बुलाकर उनसे उलूकराज के प्रहारों से बचने का उपाय पूछा । उसने कहा, "कठिनाई यह है कि हम रात को देख नहीं सकते और दिन को उल्लू न जाने कहाँ जाकर छिप जाते हैं । हमें उनके स्थान के सम्बन्ध में कुछ भी पता नहीं है। समझ नहीं आता कि इस समय सन्धि, युद्ध, यान, आसन, संश्रय, द्वैधीभाव आदि उपायों में से किसका प...

बोलने वाली गुफा - काकोलुकियम - पंचतंत्र

बोलने वाली गुफा - काकोलुकियम - पंचतंत्र  किसी जंगल में एक शेर रहता था। एक बार वह दिन-भर भटकता रहा, किंतु भोजन के लिए कोई जानवर नहीं मिला। थककर वह एक गुफा के अंदर आकर बैठ गया। उसने सोचा कि रात में कोई न कोई जानवर इसमें अवश्य आएगा। आज उसे ही मारकर मैं अपनी भूख शांत करुँगा। उस गुफा में रहने बाला व् उसका मालिक एक सियार था। वह रात होते ही लौटकर अपनी गुफा पर आया। उसकी नजर गुफा के अंदर जाते हुए शेर के पैरों के निशानों पर पड़ी। उसने ध्यान से उन पैरों के चिन्हों को देखा। उसने अनुमान लगाया कि शेर अंदर तो गया, परंतु अंदर से बाहर नहीं आया है। वह एक क्षण में समझ गया कि उसकी गुफा के अंदर कोई शेर छिपकर बैठा है। चतुर सियार ने एक क्षण विचार किया और तुरंत एक उपाय सोचा। वह गुफा के अंदर नहीं गया।उसने गुफा के द्वार से ही आवाज लगाई--- ‘ओ मेरी प्रिय गुफा, तुम आज चुप क्यों हो? आज बोलती क्यों नहीं हो?  प्रतिदिन जब भी मैं बाहर से लौटकर आता हूँ, तुम मुझे अवश्य बुलाती हो। आज तुम्हे क्या हो गया, बोलती क्यों नहीं हो?’ ...

सांप की सवारी करने वाले मेढकों की कथा

सांप की सवारी करने वाले मेढकों की कथा काकोलुकियम - पंचतंत्र  एक पर्वतों से घिरे प्रदेश में मन्दविष नाम का एक वृद्ध सर्प रहता था। एक दिन वह बैठा - बैठा विचार करने लगा कि ऐसा क्या उपाय किया जाये कि बिना परिश्रम किए ही उसकी आजीविका आराम से चलती रहे। उसके मन में तभी एक विचार प्रकट हुआ।  उसके समीप ही मेढकों से भरा तालाब था। वह उस तालाब के पास चला गया। वहां पहुँचकर सर्प बड़ी बेचैनी से तालाब के पास इधर-उधर घूमने लगा। उसे इस प्रकार घूमते हुए तालाब के किनारे एक पत्थर पर बैठा एक  मेढक देख रहा था। उस मेढ़क को सर्प को इस तरह देखकर आश्चर्य हुआ तो उसने पूछा।  “मामा जी ! आज क्या समस्या है? रात होने वाली है, परन्तु तुम अपने भोजन-पानी की व्यवस्था नहीं कर रहे हो?” सर्प बड़े दुःखी मन से बोलने लगा, “बेटे! क्या करूं, मुझे तो अब बिल्कुल भी भोजन की अभिलाषा ही नहीं रह गई है। आज सुबह - सुबह ही मैं भोजन की तलाश में निकल पड़ा था। तभी एक सरोवर के तट पर मैंने एक मेढक को बैठ...

स्वर्णयुक्त गोबर की कथा - काकोलुकियम - पंचतंत्र

स्वर्णयुक्त गोबर की कथा - काकोलुकियम - पंचतंत्र एक प्रदेश था जो कि चारों तरफ से पर्वतीय श्रंखलाओं से घिरा हुआ था। वहीं एक पर्वत के पास एक विशालकाय वृक्ष था। जिस पर सिन्धुक नाम का एक पक्षी रहता था । जब वह विष्ठा करता था तो उसकी विष्ठा में स्वर्ण-कण निकलते थे । एक दिन एक व्याध उस पेड़ के पास से गुजर रहा था । व्याध को उसकी विष्ठा के स्वर्णमयी होने का विल्कुल भी पता नहीं था। इसलिए यह सम्भव था कि व्याध उस पक्षी की उपेक्षा करके आगे निकल जाता । परन्तु मूर्ख सिन्धुक पक्षी ने व्याध के सामने ही वृक्ष के ऊपर से स्वर्ण-कण-पूर्ण विष्ठा कर दी । उसे देखकर व्याध ने शीघ्र ही उस वृक्ष पर जाल फैला दिया और स्वर्ण के लोभ के कारण व्याध ने उस पक्षी को पकड़ लिया । उस पक्षी को पकड़कर व्याध अपने घर ले आया । व्याध ने घर पर उसे पिंजरे में बंद कर दिया। लेकिन, अगले ही दिन उसे यह भय सताने लगा कि कहीं कोई पुरुष पक्षी की विष्ठा के स्वर्णयुक्त होने की बात राजा को बता देगा तो उसे राजा के सम्मुख दरबार में हाजिर होना पड़...

युवा पत्नी, बूढ़ा आदमी और चोर - काकोलूकियम

युवा पत्नी, बूढ़ा आदमी और चोर - काकोलूकियम वहुत पुरानी बात है एक ग्राम में किसान दम्पती रहा करते थे। किसान उसकी पत्नी को देखते हुए काफी वृद्ध था लेकिन उसकी पत्नी युवती थी। किसान की पत्नी अपने पति से संतुष्ट नहीं थी, इसलिए वह हमेशा अधिकांश पर-पुरुष की टोह में रहती थी, इस कारण एक क्षण भी वह घर में नहीं ठहरती थी। एक दिन जैसे ही वह घर से निकली अचानक किसी ठग ने उसको घर से निकलते हुए देख लिया। ठग ने उसका पीछा किया और जब देखा कि वह एकान्त में पहुँच गई तो उसके सम्मुख जाकर ठग ने कहा, “देखो, मेरी पत्नी का अभी कुछ समय पहले देहान्त हो चुका है। मैं तुम पर अनुरक्त हूं और तुम्हे वहुत पसंद करता हूँ । अतः तुम मेरे साथ चल सकती हो।” किसान पत्नी बोली, “यदि तुम ऐसा ही चाहते हो तो मेरे पति के पास बहुत-सारा धन है, वृद्धावस्था के कारण वह चल-फिर नहीं सकता। मैं उसको अपने साथ लेकर आती हूं, जिससे कि हम दोनों का भविष्य सुखमय और निश्चिन्त होकर बीते।” ठग बोला  “ठीक है तुम जाओ। कल प्रातःकाल ...

ब्राह्मण और सर्प की कहानी - काकोलूकियम - पंचतंत्र

ब्राह्मण और सर्प की कहानी - काकोलूकियम - पंचतंत्र किसी नगर में एक ब्राह्मण निवास करता था। उसका नाम हरिदत्त था। उसके पास अधिक खेती नहीं थी , इसलिए वह अधिकांश समय बिना काम के खाली ही बैठा रहता था। एक बार ग्रीष्म ऋतु का समय था। वह हमेशा की तरह अपने खेत पर वृक्ष की शीतल छाया में लेटा हुआ था। सोए-सोए उसकी नजर एक सर्प के बिल पर पड़ी, उसने देखा कि उस बिल के ऊपर सर्प फन फैलाए बैठा था। उसको देखकर ब्राह्मण के मन में एक विचार आया और सोचने लगा हो-न-हो, यही मेरे क्षेत्र का देवता है। मैंने कभी भी इसकी पूजा [सेवा] नहीं की। अतः आज में अवश्य इसकी पूजा करके ही रहूँगा।  यह विचार जैसे ही हरिदत्त के मन में आया वह तुरंत उठकर गांव जाकर किसी के यहाँ से दूध मांगकर ले आया। उसने दूध को एक मिट्टी के बरतन में रखकर और बिल के समीप जाकर बोला, “हे क्षेत्रपाल! आज तक मुझे इस  विषय में मालूम नहीं था कि आप यहाँ रहते है, इसलिए मैं किसी भी प्रकार से आपकी पूजा-अर्चना नहीं कर पाया। कृपया आप मेरे अपराध को क्षमा कर मुझ पर कृपा कीजिए और मुझ निर्धन...

कबूतर का जोड़ा और शिकारी - काकोलूकियम - पंचतंत्र

कबूतर का जोड़ा और शिकारी - काकोलूकियम - पंचतंत्र एक जगह एक लोभी और निर्दय व्याध रहता था । पक्षियों को मारकर खाना ही उसका प्रतिदिन का काम था । इस भयंकर काम के कारण उसके प्रियजनों ने भी उसका त्याग कर दिया था । तब से वह अकेला ही, हाथ में जाल और लाठी लेकर जंगलों में पक्षियों के शिकार के लिये घूमा करता था ।  एक दिन उसके जाल में एक कबूतरी फँस गई । उसे लेकर जब वह अपनी कुटिया की ओर चला तो आकाश बादलों से घिर गया । मूसलधार वर्षा होने लगी । सर्दी से ठिठुर कर व्याध आश्रय की खोज करने लगा । थोड़ी दूरी पर एक पीपल का वृक्ष था । उसके खोल में घुसते हुए उसने कहा----"यहाँ जो भी रहता है, मैं उसकी शरण जाता हूँ । इस समय जो मेरी सहायता करेगा उसका जन्मभर ऋणी रहूँगा ।" सम्पूर्ण चाणक्य नीति हिंदी में उस खोल में वही कबूतर रहता था जिसकी पत्‍नी को व्याध ने जाल में फँसाया था । कबूतर उस समय पत्‍नी के वियोग से दुःखी होकर विलाप कर रहा था । पति को प्रेमातुर पाकर कबूतरी का मन आनन्द से नाच उठा । उसने मन ही मन सोचा----’मेरे धन्य भाग्य हैं जो ऐसा प्रेमी पति मिला है । पति का प्रेम ही पत्‍नी का जीवन ह...

ब्राह्मण, चोर और दानव की कथा - काकोलूकियम - पंचतंत्र

ब्राह्मण, चोर और दानव की कथा - काकोलूकियम - पंचतंत्र  एक गाँव में द्रोण नाम का एक ब्राह्मण रहता था । वह गांव से प्रतिदिन भिक्षा माँग कर अपनी जीविका चलाता था। सर्दी-गर्मी रोकने के लिये उसके पास पर्याप्त वस्त्र भी नहीं थे । एक बार किसी यजमान ने ब्राह्मण पर दया करके उसे बैलों की जोड़ी दे दी । ब्राह्मण ने बैलों का भरन-पोषण बड़े यत्‍न से किया । आस-पास से घी-तेल-अनाज माँगकर भी उन बैलों को भरपेट खिलाता रहा । मूर्ख बगुला और नेवला -मित्रभेद -पंचतंत्र इस तरह दोनों बैल खूब मोटे-ताजे हो गये । उन्हें देखकर एक चोर के मन में लालच आ गया । उसने चोरी करके दोनों बैलों को भगा लेजाने का निश्चय कर लिया । इस निश्चय के साथ जब वह अपने गाँव से चला तो रास्ते में उसे लंबे-लंबे दांतों, लाल आँखों, सूखे बालों और उभरी हुई नाक वाला एक भयंकर आदमी मिला । सिंह और सियार - मित्रभेद - पंचतंत्र उसे देखकर चोर ने डरते-डरते पूछा----"तुम कौन हो ? उस भयङकर आकृति वाले आदमी ने कहा----"मैं ब्रह्मराक्षस हूँ, पास वाले ब्राह्मण के घर से बैलों की जोड़ी चुराने जा रहा हूँ । राक्षस ने कहा ----"मित...

बकरा, ब्राह्मण और तीन ठग - काकोलूकियम - पंचतंत्र

बकरा, ब्राह्मण और तीन ठग - काकोलूकियम - पंचतंत्र  पुराने समय की बात है एक गांव में सम्भुदयाल नामक एक ब्राह्मण रहता था। एक बार वह अपने यजमान से एक बकरा लेकर अपने घर जा रहा था। उसके घर का रास्ता काफी लम्बा और सुनसान था। आगे जाने पर रास्ते में सम्भुदयाल को तीन ठग मिले। ब्राह्मण सम्भुदयाल के कंधे पर बकरे को देखकर तीनों ने उसे हथियाने की योजना बनाई। 'अभागा बुनकर' एक ने ब्राह्मण को रोककर कहा, “पंडित जी यह आप अपने कंधे पर क्या उठा कर ले जा रहे हैं। यह क्या अनर्थ कर रहे हैं? ब्राह्मण होकर कुत्ते को कंधों पर बैठा कर ले जा रहे हैं।” ब्राह्मण ने उसे झिड़कते हुए कहा, “अंधा हो गया है क्या? दिखाई नहीं देता यह बकरा है।” कौवे और उल्लू का बैर पहले ठग ने फिर कहा, “खैर मेरा काम आपको बताना था। अगर आपको कुत्ता ही अपने कंधों पर ले जाना है तो मुझे क्या? आप जानें और आपका काम। थोड़ी दूर चलने के बाद ब्राह्मण को दूसरा ठग मिला। उसने ब्राह्मण को रोका और कहा, “पंडित जी क्या आपको पता नहीं कि उच्चकुल के लोगों को अपने कंधों पर कुत्ता नहीं लादना चाहिए। पंडित उसे भी झिड़क कर आगे...

चुहिया का स्वयंवर - काकोलूकियम - पंचतंत्र

चुहिया का स्वयंवर - काकोलूकियम - पंचतंत्र गंगा नदी के किनारे एक तपस्वियों का आश्रम था । उस आश्रम में एक मुनि रहते थे जिनका नाम याज्ञवल्क्य था। एक दिन मुनिवर एक नदी के किनारे जल लेकर आचमन कर रहे थे कि अचानक पानी से भरी उनकी हथेली में ऊपर से एक चुहिया गिर गई । उस चुहिया को आकाश में एक बाज अपने पंजे में दबाकर ले जा रहा था । उसके पंजे से छूटकर वह नीचे गिर गई । मुनि ने उसे पीपल के पत्ते पर रखा और फिर से गंगाजल में स्नान किया । हाथी और चतुर खरगोश  चुहिया में अभी प्राण शेष थे । उसे मुनि ने अपने प्रताप से कन्या का रुप दे दिया, और अपने आश्रम में ले आये । मुनि-पत्‍नी को कन्या अर्पित करते हुए मुनि ने कहा कि इसे अपनी ही लड़की की तरह पालना । उनके अपनी कोई सन्तान नहीं थी , इसलिये मुनिपत्‍नी ने उसका लालन-पालन बड़े प्रेम से किया । १२ वर्ष तक वह उनके आश्रम में पलती रही । जब वह विवाह योग्य अवस्था की हो गई तो पत्‍नी ने मुनि से कहा--"नाथ ! अपनी कन्या अब विवाह योग्य हो गई है । इसके विवाह का प्रबन्ध कीजिये ।" मुनि ने कहा--"मैं अभी आदित्य को बुलाकर इसे उसके हाथ सौंप देता...

दो सांपों की कहानी - काकोलूकियम - पंचतंत्र

दो सांपों की कहानी - काकोलूकियम - पंचतंत्र   एक नगर में देवशक्ति नाम का राजा रहता था । उसके पुत्र के पेट में एक साँप चला गया था। उस साँप ने वहीं अपना बिल बना लिया था । पेट में बैठे साँप के कारण उसके शरीर का प्रति-दिन क्षय होता जा रहा था । बहुत उपचार करने के बाद भी जब स्वास्थ्य में कोई सुधार न हुआ तो अत्यन्त निराश होकर राजपुत्र अपने राज्य से बहुत दूर दूसरे प्रदेश में चला गया ।और वहाँ सामान्य भिखारी की तरह मन्दिर में रहने लगा। उस प्रदेश के राजा बलि की दो नौजवान लड़कियाँ थीं । वह दोनों प्रति-दिन सुबह अपने पिता को प्रणाम करने आती थीं । उनमें से एक राजा को नमस्कार करती हुई कहती थी--- "महाराज ! जय हो । आप की कृपा से ही संसार के सब सुख हैं ।" दूसरी कहती थी----"महाराज ! ईश्‍वर आप के कर्मों का फल दे ।" दूसरी के वचन को सुनकर महाराज क्रोधित हो जाता था । एक दिन इसी क्रोधावेश में उसने मन्त्रि को बुलाकर आज्ञा दी----"मन्त्रि ! इस कटु बोलने वाली लड़की को किसी गरीब परदेसी के हाथों में दे दो, जिससे यह अपने कर्मों का फल स्वयं चखे ।" मन्त्रियों ने राजाज्ञा स...

हाथी और चतुर खरगोश - काकोलूकियम - पंचतंत्र

हाथी और चतुर खरगोश - काकोलूकियम - पंचतंत्र  एक वन में ’चतुर्दन्त’ नाम का वहुत भारी भरकम शरीर वाला हाथी रहता था । वह उस जंगल में रहने बाले सभी हाथियों का मुखिया था । उस जंगल में बरसों तक सूखा पड़ने के कारण वहा के सब झील, तलैया, तालाब धीरे - धीरे सूख गये, और वृक्ष भी मुरझा गए । सभी हाथी पानी के लिए तड़फने लगे। सब हाथियों ने मिलकर अपने गजराज चतुर्दन्त को कहा कि हमारे बच्चे भूख-प्यास से मर रहे है , जो शेष हैं मरने वाले हैं । इसलिये जल्दी ही किसी बड़े तालाब की खोज की जाय । पढ़िए " मुर्ख साधु और ठग"   बहुत देर सोचने के बाद चतुर्दन्त ने कहा----"मुझे एक तालाब याद आया है । वह पातालगङगा के जल से सदा भरा रहता है । चलो, वहीं चलें ।" पाँच रात की लम्बी यात्रा के बाद सब हाथी वहाँ पहुँचे । तालाब में पानी था । दिन भर पानी में खेलने के बाद हाथियों का दल शाम को बाहर निकला । तालाब के चारों ओर खरगोशों के अनगिनत बिल थे । उन बिलों से जमीन पोली हो गई थी । हाथियों के पैरों से वे सब बिल टूट-फूट गए । बहुत से खरगोश भी हाथियों के पैरों से कुचले गये । किसी की गर्दन टूट गई, किसी का पै...

सूडान, एक बच्ची को खाने के लिए बैठा गिद्ध | कुपोषित बच्ची को खाना चाहता था गिद्ध

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सूडान, एक बच्ची को खाने के लिए बैठा गिद्ध  दोस्तों सन 1993 की बात है। जगह थी सूडान। एक फोटोग्राफर को पुलित्जर अवार्ड मिला। लेकिन 4 महीने बाद ही उस फोटोग्राफर ने आत्महत्या कर ली। पता है आपको आत्महत्या का कारण क्या था ????? तो सुनिए शायद सुनकर आपको दुःख होगा।  Friends, it is a matter of 1993. The place was Sudan. A photographer received a Pulitzer Award. But 4 months later the photographer committed suicide. Do you know what was the reason for the suicide ????? So listen, maybe you will be sad to hear. पढ़िए लव जिहाद एक सच्ची कहानी   दरअसल यह एक दर्दनाक तस्वीर थी जिसमे एक गिद्ध एक भूख से तड़पती बच्ची के मरने का इन्तजार कर रहा था। फोटोग्राफर ने यह मार्मिक तस्वीर अपने कैमरे में कैद कर ली जो वहुत बड़ी खबर बनकर छपी थी। सबसे प्रतिष्ठित सम्मान मिलने के बाद वह फोटोग्राफर बहुत खुश हुआ अर्थात बहुत ख़ुशी से वह अपना जीवन जी रहा था।  Actually it was a painful picture in which a vulture was waiting for the death of a hungry girl. The photographer captured this touching photo...

love jihad cases | लव जिहाद एक सच्ची कहानी | love jihad news

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लव जिहाद एक सच्ची कहानी  लव जिहाद का आरोपी शाकिब  यह मामला वहुत ही जघन्य है और में इस मामले में वहुत धन्यवाद करना चाहता हु मेरठ के एस एस पी श्री अजय साहनी जी व् उनकी पूरी टीम का जिन्होंने एक साल के अंदर काफी मेहनत करते हुए इस केश को अंजाम तक पंहुचा दिया। साहनी जी चाहते तो अन्य अज्ञात लाश की तरह इस लाश का भी केश बंद कर सकते थे।  This matter is very heinous and I want to thank him very much in this matter, SSP of Meerut Shri Ajay Sahni ji and his entire team who worked hard within a year to reach this hairstyle. If Sahni Ji wanted, like other unidentified zombies, he could also shave off the hair of this corpse. मेरठ के पास लोइया गांव में शबी अहमद के खेत से एक कुत्ता किसी मानव अंग को लेकर भाग रहा था। कुत्ते को मानव अंग लेकर भागते हुए ईश्वर पंडित ने देख लिया। उन्हें शक हुआ और पुलिस को सुचना दी गई। पुलिस ने वहां आकर शबी अहमद के खेत की खुदाई करबाई तो वहां एक लाश मिली। लाश किसी महिला की थी जिसका शिर व् दोनों हाथ गायब थे।  A dog was running away...