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मार्च, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शेर और चतुर खरगोश - मित्रभेद - पंचतंत्र की कहानी

शेर और चतुर खरगोश - मित्रभेद - पंचतंत्र  एक वहुत घना जंगल था। उस जंगल में सभी प्रकार के जानवर रहते थे। उस जंगल में एक बहुत बड़ा खरतरनाक शेर भी रहता था। वह रोज शिकार पर निकलता और एक नहीं, दो नहीं बल्कि कई-कई जानवरों का काम तमाम कर देता था अर्थात मार देता था। जंगल के जानवर डरने लगे। जंगल के जानवर सोचने लगे अगर शेर इसी तरह शिकार करता रहा तो एक दिन ऐसा आयेगा कि जंगल में कोई भी जानवर नहीं बचेगा।  सारे जंगल में सनसनी और खौफ फैल गया। शेर को रोकने के लिये कोई न कोई उपाय करना वहुत जरूरी था। एक दिन जंगल के सारे जानवर इकट्ठा हुए और इस प्रश्न पर विचार करने लगे। अन्त में उन्होंने तय किया कि वे सब शेर के पास जाकर उनसे इस बारे में बात करें। दूसरे दिन जानवरों का एक दल शेर के पास पहुंचा। उन सभी जानवरों को अपनी ओर आते देख शेर घबरा गया और उसने गरजकर पूछा, ‘‘क्या बात है ? तुम सब यहां क्यों आये हो ?’’ जानवर दल के नेता ने डरते हुए कहा, ‘‘महाराज, हम आपके पास एक निवेदन करने आये हैं। आप राजा हैं और हम आपकी प्रजा। जब आप शिकार करने निकलते हैं तो आप वहुत जानवरो को मार डालते हैं। आप सबको खा भ...

मुर्ख साधू और ठग - मित्रभेद - पनचंत्र

मूर्ख साधू और ठग - मित्रभेद - पंचतंत्र  वहुत पुराने समय की बात है, एक देवधर नाम का गांव था। उस गांव में एक भव्य मंदिर था। उस मंदिर में एक देव शर्मा नाम का प्रतिष्ठित साधू रहता था। गांव में सभी लोग उनका सम्मान करते थे क्योंकि वह साधू वहुत ही ज्ञानी पुरुष था। सभी आस -पास के गांव और नगरों के लोग उसे ही अनुष्ठान आदि के लिए बुलाते थे। इस तरह उसे अपने भक्तों से दान में तरह- तरह के वस्त्र, उपहार, खाद्य सामग्री और पैसे मिलते थे। उन वस्त्रों को बेचकर साधू ने काफी धन जमा कर लिया था। साधू कभी किसी पर भी विश्वास नहीं करता था और हमेशा अपने धन की सुरक्षा के लिए चिंतित रहता था कि कही धन चोरी न हो जाये। वह अपने धन को एक पोटली में बांधकर रखता था और उसे हमेशा अपने साथ लेकर ही चलता था। उसी गाँव में एक ठग भी रहता था। बहुत दिनों से ठग की नजर साधू के धन पर थी। ठग हमेशा साधू का पीछा किया करता था जहाँ भी साधू जाता ठग उसके पीछे -पीछे जाता था , लेकिन साधू उस गठरी को कभी अपने से अलग नहीं होने देता था। आखिरकार उस ठग ने एक योजना बनाई , योजनानुसार उस ठग ने एक छात्र का वेश धारण किया और उस साधू के...

बन्दर और लकड़ी का खूंटा मित्रभेद - पंचतंत्र की हिंदी कहानी

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 बन्दर और लकड़ी का खूंटा  मित्रभेद - पंचतंत्र  वहुत पुराने समय की बात है दोस्तों एक शहर के नजदीक जंगल में एक मंदिर के निर्माण का कार्य चल रहा था। उस मंदिर में लकडी का कार्य बहुत था इसलिए लकडी चीरने वाले बहुत से मज़दूर काम पर लगे हुए थे। मंदिर के चारों तरफ लकडी के लठ्टे पडे हुए थे ,क्योंकि लकड़ी में से लठ्टे व शहतीर चीरने का काम चल रहा था। सारे मज़दूरों को दोपहर का भोजन करने के लिए शहर जाना पडता था, इसलिए दोपहर के समय एक घंटे तक वहां कोई नहीं रहता था। बन्दर और लकड़ी का खूंटा  एक दिन खाने का समय हुआ तो सारे मज़दूर काम छोडकर शहर की तरफ चल दिए। एक लठ्टा आधा चिरा हुआ रह गया था। आधे चिरे लठ्टे में मज़दूर लकडी का कीला फंसाकर भोजन के लिए चले गए। ऐसा कारीगरों ने इसलिए किया क्योंकि दोबारा आरी घुसाने में आसानी रहती है। उस जंगल में बन्दर भी काफी संख्या में रहते थे। जैसे ही कारीगर व मजदूर खाना खाने के लिए शहर की और लौटे तभी वहां बंदरों का एक दल उछलता-कूदता आया। उनमें से एक बन्दर वहुत ही शरारती था, जो बिना मतलब चीजों से छेडछाड करता रहता था। बिना मतलब चीजों को छेड़...

सियार और ढोल मित्रभेद - पंचतंत्र की हिंदी कहानी

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सियार और ढोल - मित्रभेद - पंचतंत्र एक बार दो राजाओं के बीच घोर युद्ध हुआ। युध्दभूमि के निकट ही एक जंगल था। उस युध्द में एक राजा विजयी हुआ और एक हार गया । युध्द समाप्त होने के बाद सेनाएं अपने नगरों को लौट गई। किसी कारणवस, सेना का एक ढोल पीछे रह गया अर्थात युध्दभूमि में छूट गया। उस ढोल को बजा-बजाकर सेना के साथ गए भांड व चारण रात को वीरता की कहानियां सुनाते थे। युद्ध समाप्त होने के कुछ दिन बाद एक दिन आंधी, तूफान आया। आंधी के जोर से वह ढोल लुढकता-लुढ़कता एक सूखे पेड से टकरा गया और वहीं पर जाकर रुक गया। उस पेड की सूखी टहनियां ढोल से इस तरह से सट गई थी कि तेज हवा चलते ही ढोल पर टकरा जाती थी और ढमाढम ढमाढम की गुंजायमान ज़ज़ आवाज उस ढोल से निकलती। एक सियार उस क्षेत्र में अक्सर घूमता था। अचानक उसने ढोल की आवाज़ सुनी। वह बडा भयभीत हुआ। ऐसी अजीब आवाज बोलते पहले उसने कभी किसी जानवर को नहीं सुना था। वह सोचने लगा कि यह कैसा जानवर हैं, जो ऐसी जोरदार बोली बोलता हैं ’ढमाढम’। सियार झाड़ी के पीछे छिपकर ढोल को देखता रहता था , यह जानने के लिए कि यह जीव उडने वाला हैं या चार टांगो पर दौडने वाला।...

जैसे को तैसा -मित्रभेद -पंचतंत्र की कहानी

जैसे को तैसा -मित्रभेद -पंचतंत्र एक नगर में जीणधान नाम के बनिये का लड़का रहता था। धन की खोज में उसने परदेश जाने का विचार किया । उसके घर में विशेष सम्पत्ति तो थी नहीं, उसके पास केवल एक मन भर बजन लोहे की तराजू थी । उसे एक महाजन के पास धरोहर के रूप में रखकर वह विदेश चला गया । बनिये का लड़का जब विदेश से वापिस आया तो आने के बाद वह सीधा महाजन के पास गया और अपनी धरोहर को बापस करने के लिए कहा। महाजन ने कहा -“तुमने जो लोहे की तराजू धरोहर के रूप में रखी थी। उसे तो चूहों ने खा लिया, मुझे इस बात का काफी दुःख है ।” महाजन की बात सुनते ही बनिये का लड़का समझ गया कि वह मेरी तराजू को देना नहीं चाहता । लेकिन अब उपाय कोई नहीं था । थोड़ी देर सोचकर उसने कहा—“कोई बात नहीं जो हुआ सो हुआ, व्यर्थ की चिंता छोडो । चुहों ने तराजू को खाया है तो इसमें चूहों का ही दोष माना जायेगा , इसमें तुम्हारा क्या दोष हो सकता है । तुम इसकी चिन्ता बिल्कुल मत करो ।” कुछ समय बाद उसने महाजन से कहा—“मित्र ! मैं नदी पर अभी ...

मित्र - द्रोह का फल - मित्रभेद पंचतंत्र की कहानी

मित्र - घात का फल - मित्रभेद - पंचतंत्र  एक समय की बात है दो घनिष्ठ मित्र थे जो हिम्मत नगर में रहते थे। उनमे से एक का नाम था पापबुद्धि और दूसरे का नाम था धर्मबुद्धि। एक बार पापबुद्धि के मन में एक विचार आया कि क्यों न में मित्र धर्मबुद्धि के साथ दूसरे देश जाकर वहुत सारा धन कमाकर एकत्रित करूँ। बाद में किसी न किसी युक्ति ( चालाकी ) से उसका सारा धन ठग-हड़पकर सुख -चैन से पूरी जिन्दगी जीऊँगां। इसी नियति से पापबुद्धि ने अपने मित्र धर्मबुद्धि को धन और ज्ञान प्राप्त करने का लोभ देकर अपने साथ बाहर जाने के लिए राजी कर लिया।  दोनों मित्र शुभ -मुहूर्त देखकर एक अन्य शहर ( विदेश ) के लिए रवाना हो गए। जाते समय दोनों अपने -अपने साथ वहुत सारा माल लेकर गए तथा मुँह मांगे दामों पर दोनों ने अपना -अपना माल बेचकर वहुत सारा धन कमा लिया। जब दोनों को लगा कि जीवन अच्छे से जीने के लिए पर्याप्त धन कमा लिया है। उसके बाद दोनों मित्र प्रसन्न मन से अपने गाँव की तरफ लौट गए।  दोनों मित्र जैसे -जैसे गांव के निकट पहुंचे तो पापबुद्धि ने धर्मबुद्धि से कहा। मेरे विचार से हम लोगों को ए...

नीम के पेड़ के फायदे व उसका उपयोग

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नीम के पेड़ के फायदे व उसका उपयोग दोस्तों नीम एक ऐसा पेड़ है जो अनेकों औषधीय गुणों से भरपूर है। नीम आयुर्वेद का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। नीम का पेड़ आसानी से सभी स्थानों पर मिल जाता है। इसका हमारे सामान्य जीवन में हेत उपयोग होता है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में लोग इसका बड़े स्तर पर उपयोग करते हैं। इसकी पत्तियों से लेकर इसके छाल और बीज (निबौरी) पर ही उपयोगी और प्रभावी होते हैं। इसके अलग अलग भागों का एक अलग परिवेश होता है। यह स्वाद में भले ही कड़वा हो लेकिन इससे होने वाले लाभ को कम करने में कोई फायदा नहीं है। नीम के पेड़ के फायदे नोट : नीम का अत्यधिक सेवन नपुंसकता ला सकता है, इसका उपयोग करने से पहले हमे इस बात का ध्यान रखना चाहिए। किसी भी बीमारी में नीम का उपयोग करने से पहले अपने डाक्टर की सलाह अवश्य ले।  1. गंजेपन को रोकने में सहायक : हमें अपने जीवन में कभी कभी तेजी से बालों का झड़ना ,टूटना जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जिसके कारण हम गंजेपन का शिकार हो जाते है। हमें गंजेपन का सामना हमारे शरीर में पोषक तत्वों की कमी आ जाना ,बालों के लिए अनेक प्रकार के तेलों क...

कोरोनोवायरस क्या है, यह कैसे शुरू हुआ और इससे बचने के प्राथमिक उपचार

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कोरोनोवायरस क्या है, यह कैसे शुरू हुआ और इसका प्रकोप तेजी से बढ़ सकता है?  coronavirus  नया कोरोनावायरस ( कोविद -19 ) तेजी से फैल रहा है। 243,000 से अधिक लोग संक्रमित होने के लिए जाने जाते हैं और 9,880 से अधिक लोगों की मौत दर्ज की गई है - जिसमें यूके में 144 लोग शामिल हैं, जिन्हें वायरस का पता चला था।और भारत में कोरोनावायरस से पीड़ित लोगों की संख्या 225  को पार कर चुकी है दिल्ली में कई दफ्तर हो चुके है बंद। सबसे अधिक कोरोना से प्रभावित 37 लोग महाराष्ट्र में पाए गए। दिन-प्रतिदिन  कोरोनावायरस के  मरीजों की संख्या में बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है।    जबकि चीन में इसका प्रकोप शुरू हुआ था, बहुत सारे मामले और घातक परिणाम अब देश के बाहर हैं और वायरस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेजी से फैल रहा है। प्रत्येक देश की सरकारें कोरोनावायरस से निपटने के लिए हर सम्भव प्रयाश कर रही है।  कोरोनोवायरस क्या है ? कोरोनावायरस कोरोनावायरस का एक परिवार है जो जानवरों में बीमारी का कारण बनता है। नए वायरस सहित सात ने मनुष्यों...

लड़ती भेड़ें और सियार, पंचतंत्र - मित्रभेद की प्रेरक कहानी

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लड़ती भेड़ें और सियार  मित्रभेद - पंचतंत्र दोस्तों एक दिन एक सियार एक गांव के समीप होकर गुजर रहा था। गांव के निकट ही एक बाजार लग रहा था। उस सियार ने देखा कि बाजार के निकट लोगों की भीड़ लगी हुई है। कौतूहलवश उस सियार के मन में एक विचार आया, कि मुझे देखना चाहिए कि यहाँ लोगों की भीड़ क्यों लगी हुई है। सियार तुरन्त उस भीड़ की ओर चल दिया, और वहां जाकर उसने देखा कि दो बकरे आपस में लड़ रहे है। two goats fighting  दोनों ही बकरे इतने बड़े और तागतवर थे कि उनमें वहुत ही जबरदस्त लड़ाई हो रही थी। वहां खड़े सभी लोग उन्हें देखकर जोर -जोर से चिल्ला रहे थे और तालियां पीट रहे थे। दोनों बकरे लड़ते -लड़ते लहूलुहान हो रहे थे। बकरों के खून इतना निकल चुका था कि खून बहकर सड़क पर आने लगा था। जब सियार ने बकरों के इतना सारा ताजा खून निकलते हुए देखा तो सियार अपने आपको रोक नहीं पाया। सियार उस ताजे खून का स्वाद लेना चाहता था। सियार किसी भी तरह उन बकरों को अपना भोजन बनाना चाहता था, अर्थात उन्हें खाना चाहता था। सियार बिना कुछ सोचे -समझे उन बकरों पर टूट पड़ा।  लेकिन दोनों ही ब...

बगुला भगत ,पंचतंत्र-मित्रभेद की प्रेरक कहानी

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बगुला भगत -मित्रभेद  एक जंगल में वहुत बड़ा तालाब था। उस तालाब में सभी प्रकार के जीव -जंतुओं के लिए खाने के लिए भोजन सामग्री उपलब्ध थी। इस कारण से उस तालाब में व् उसके आस पास सभी प्रकार के जीव-जंतु जैसे पक्षी ,सांप ,मछलियां ,कछुए ,केकड़े आदि वास करते थे। उस तालाब के पास में ही एक बगुला रहता था जो कि वहुत ही आलसी था। उस बगुले को अपनी आँखों से भी कम दिखाई देता था और परिश्रम तो वह विल्कुल भी करना ही नहीं चाहता था। मछलियां पकड़ने के लिए तो मेहनत करनी पड़ती है, जो कि बगुला विल्कुल भी नहीं करना चाहता था। इस कारण वह आलसी बगुला अधिक तरह भूखा ही रहता था। एक पैर पर खड़ा होकर यही सोचता रहता था, कि ऐसा क्या किया जाये कि बिना मेहनत के रोजाना भोजन मिलता रहे।  बगुला भगत  एक दिन बगुला के दिमाग में एक तरकीब आयी और वह उस तरकीब को आजमाने बैठ गया। वह तालाब के किनारे खड़ा होकर रोने का नाटक करने लगा और आँखों से दिखावटी आंसू बहाने लगा। एक केकड़ा उसे रोता हुआ देखकर उसके समीप आया और पूछने लगा। मामा क्या बात है ? अपने भोजन के लिए मछलियों का शिकार करने के बजाय यहाँ खड़े होकर आंसू बहा रहे ...

गुस्सा बुरी बलाय ,हमें गुस्सा कभी नहीं करना चाहिए

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गुस्सा बुरी बलाय  दोस्तों वहुत पुरानी बात है एक गांव में एक वहुत ही सुन्दर लड़की रहती थी। वह इतनी सुन्दर थी जो भी उसे देखता वस् उसका दीवाना हो जाता था ,अर्थात उसे देखता ही रह जाता था। परन्तु उस लड़की की एक खासियत थी, कि उसे गुस्सा वहुत आता था। गुस्से में वह किसी के साथ कुछ भी कर देती थी। गुस्से में उसे किसी की कुछ भी परबाह नहीं रहती थी। वह किसी का भी अपमान कर देती थी। उसके घरवाले उसकी इस आदत से वहुत परेशान थे।  Friends, it is a very old thing, a very beautiful girl lived in a village. She was so beautiful that anyone who saw her would become obsessed with her, that is, she would keep looking at him. But that girl had a specialty, that she used to get angry. In anger, she would do anything to anyone. He was not angry with anyone in anger. She used to insult anyone. His family members were very upset with this habit. गुस्सा करना बुरी बात है।  एक वार उसके पिता ने उसे सबक सिखाने के वारे में सोचा। उसके पिता ने एक दिन उसे कुछ लोहे की कील और एक हथो...

महाराज धृतराष्ट्र अन्धे क्यों थे ! धृतराष्ट्र के अंधे होने के पीछे एक हंस का भयानक श्राप

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महाराज धृतराष्ट्र अन्धे क्यों थे  दोस्तों महाभारत एक ऐसी कथा है आप जितना इसे पड़ोगे आपको उतना ही अधिक इसके एक के बाद एक रहस्यों को जानने की जिज्ञासा होगी। दोस्तों आज हम आपको अपने इस लेख में बतायेंगे कि महाभारत के धृतराष्ट्र अंधे क्यों थे। क्या धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे थे या फिर जन्म के बाद अंधे हुए थे। Friends, Mahabharata is such a story, the more you read it, the more you will be curious to know its secrets one after the other. Friends, today we will tell you in this article why Dhritarashtra of Mahabharata was blind. Was Dhritarashtra blind since birth or was he blind after birth.  दोस्तों महाभारत की कथा के अनुसार धृतराष्ट्र अपने पिछले जन्म में भी एक राजा हुआ करते थे। लेकिन अपने पिछले जन्म में ये वहुत ही दुष्ट और पापी राजा थे। महज अपनी प्रशन्नता के लिए धृतराष्ट्र किसी के साथ कुछ भी न करने योग्य कार्य कर देते थे।धृतराष्ट्र अपने सामने  किसी की भी भावनाओं की कोई कीमत नहीं समझते थे। उन्हें सिर्फ अपने मनोरंजन से ही मतलब था।  ...

क्रोध के कुछ पल, एक प्रेरक कहानी 100 फीसदी जो आपकी जिन्दगी बदल दे

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क्रोध के कुछ पल  दोस्तों बहुत पुरानी बात है एक युवक था। जिसकी शादी को एक वर्ष ही हुआ था। उसने अपने पिता के सामने एक इच्छा प्रकट की। उसने कहा कि वह विदेश जाकर नौकरी (व्यापार ) करना चाहता है और वहुत सारा धन कमाना चाहता है। ताकि उसकी आने वाली पीड़ी को सारे सुख मिल सके। युवक के पिता ने उसे विदेश जाने की अनुमति दे दी। इस तरह वह युवक अपनी गर्भवती पत्नी को माँ -बाप के जिम्मे छोड़कर व्यापार के लिए विदेश चला गया। Friends, there is a very old thing, there was a young man, who was married for one year. He expressed a wish to his father. He said that he wants to go abroad for a job (business) and earn all the money so that his future generation can get all the happiness. The young man's father gave him permission to go abroad. In this way, the young man left his pregnant wife responsible for mother-father and went abroad for business. परदेश जाकर उसने व्यापार शुरू किया और धीरे -धीरे वहुत सारा धन कमा लिया। वहां उस युवक ने अठारह वर्ष तक व्यापार किया। जब उसे लगा कि मेने ...